जंगल संकटग्रस्त, सरकार चुनाव में मस्त

करोड़ों की वन सम्पदा का नुकसान हुआ

देहरादून। रोम जल रहा था और नीरो बांसुरी बजा रहा था, निश्चित ही यह कहावत आपने सुनी होगी। उत्तराखण्ड के बारे में यह किवदंती शतकृप्रतिशत सही उतर रही है। उत्तराखण्ड के जंगल इन दिनों धूंकृधूं कर जल रहे है और सूबे का वन विभाग और सत्ता में बैठे नेता कुछ भी नहीं कर पा रहे है।
अभी दो दिन पहले चुनाव प्रचार से समय निकाल कर सूबे के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी दून आये तो उन्होने हालात की नजाकत भांपते हुए दून में अधिकारियों से बैठक की। जंगलो में लगी इस आग पर बड़ी गंभीर संवेदना के साथ उन्होने कहा कि हम आग पर काबू पाने का निरंतर प्रयास कर रहे है। हमने वायु सेना से मदद मांगी है और एमआईकृ17 आग बुझाने आ गया है। मुख्यमंत्री ने हेलीकाप्टर से इस जंगल की आग का हवाई सर्वे भी किया। लेकिन न तो सीएम के हेलीकाप्टर में उड़ने से आग पर कोई असर हुआ और न ही एमआईकृ17 ही आग बुझा सका।
आज मुख्यमंत्री धामी पश्चिमी बंगाल के चुनावी दौरे पर है। जहंा हुगली में उन्होने भाजपा प्रत्याशी के लिए रोड शो किया और भाजपा प्रत्याशी लाकेट चटर्जी के जीत का दावा करते हुए उन्होने अबकी बार 400 पार और पीएम मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार सरकार बनाने का दावा किया। इधर आज पौड़ी के जंगलों में बेकाबू हुई आग को बुझाने के लिए चिंतित जिलाधिकारी आशीष चैहान एनडीआरएफ के मुख्यालय से मदद की गुहार लगा रहे थे। एक तरफ सीएम धामी की चुनावी हुंकार और दूसरी तरफ डीएम साहब की गुहार। जनता के लिए जीने मरने की बात करने वाले सूबे के नेताओ और वन विभाग के अधिकारियों को जनता तथा अपने जंगल और जमीन की कितनी चिंता है आप खुद समझ सकते है।
धामी से पूर्व जब तीरथ सिंह रावत कुछ माह के लिए सीएम बनाये गये थे तो उन्होने वना की आग पर काबू पाने के लिए 10 हजार वन मित्रों की नियुक्ति की बात की थी। उनका क्या हुआ इस बारे में तीरथ रावत को कुछ पता नही है। वह कहते है कि सीएम धामी को ही पता होगा। लेकिन तीरथ रावत को कम से कम सीएम धामी से यह पूछना तो चाहिए? हर साल हजारों हेक्टेयर जंगल जल जाते है। पर्यावरण और वन सम्पदा का भारी नुकसान होता है। लेकिन 20 सालों में इन जंगलों को बचाने के लिए वन विभाग व सरकार ने क्या किया? इसका कोई जवाब किसी के पास नहीं है।

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