सरकार को बेवजह बदनाम कर रहे हैं अशासकीय महाविद्यालय के शिक्षक
छात्र संगठनों की शिकायत पर शासन ने दिये हैं जांच के आदेश
देहरादून। उच्च शिक्षा निदेशक डा. कुमकुम रौतेला ने एक बयान जारी कर बताया कि राज्य सरकार ने प्रदेश के 15 अशासकीय महाविद्यालयों का वेतन जारी कर दिया है। इन महाविद्यालयों ने श्रीदेव सुमन उत्तराण्ड विश्वविद्यालय से सम्बद्धता ग्रहण करने पर अपनी सहमति जताई है। जबकि शेष तीन अशासकीय महाविद्यालय सम्बद्धता को लेकर अपनी मनमानी पर अड़े हैं और सरकार के विरूद्ध अनावश्यक दुष्प्रचार कर रहे हैं। डा. रौतेला ने बताया कि सरकार और शासन द्वारा निर्धारित नियमों के तहत कार्य करने पर किसी का वेतन नहीं रोका है। सिर्फ ऐसे महाविद्यालयों के वेतन पर रोक लगाई है जिन्होंने अपने शिक्षकों की उपस्थिति और कक्षाओं के संचालन की आख्या निदेशालय को उपलब्ध नहीं कराई।
उच्च शिक्षा निदेशक डा0 कुमकुम रौतेला ने बताया कि कुछ अशासकीय महाविद्यालयों के शिक्षकों और उनका संगठन ग्रूटा सरकार के विरूद्ध लगातार दुष्प्रचार कर रहा है। जबकि राज्य सरकार 15 अनुदानित काॅलेजों को वेतन दे चुकी है। शेष 03 अशासकीय महाविद्यालयों का वेतन शासन स्तर पर चल रही जांच में सहयोग न किये जाने के चलते रोका गया। डा0 रौतेला ने बताया कि निदेशालय द्वारा इन महाविद्यालयों के प्राचार्यों से शिक्षकों की उपस्थिति और कक्षाओं के संचालन की आख्या मांगी गयी थी, लेकिन संबंधित प्राचार्यों द्वारा अभी तक दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराये हैं। उन्होंने बताया कि छात्र संगठनों और छात्रों द्वारा समय-समय पर शिक्षकों के खिलाफ की गई शिकायत पर शासन ने ऐसे महाविद्यालयों के खिलाफ जांच की संस्तुति की थी। छात्र संगठनों का आरोप था कि अशासकीय महाविद्यालयों में शिक्षक अपनी उपस्थिति तो लगाते है, लेकिन छात्रों को पढ़ाने के बजाय अन्य गतिविधियों में संलिप्त रहते हैं। इतना ही नहीं ये शिक्षक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार कक्षाएं भी नहीं लेते हैं।
डा0 कुमकुम रौतेला ने बताया कि लाॅकडाउन अवधि में शासन द्वारा निर्धारित और निर्देशित मानकों के अनुसार ऐसे 25 शिक्षकों द्वारा आनलाइन माध्यम से कक्षाएं भी नहीं ली गई। जबकि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा असिस्टेन्ट प्रोफेसर हेतु प्रति सप्ताह 24 वादन, एसोसिएट प्रोफेसर हेतु 21 वादन तथा प्रोफेसर हेतु 18 वादन का निर्धारण किया गया है। उन्होंने कहा कि सरकार ने किसी भी शिक्षक का वेतन नहीं रोका गया है, बल्कि वैधानिक व्यवस्था के विपरीत अन्य गतिविधियों में संलिप्त प्राध्यापकों के संबंध में संबंधित महाविद्यालयों के प्राचार्यों से शासन के निर्देश पर स्पष्टीकरण मांगे गए हैं, जिससे छात्र हित प्रभावित न हों। वहीं उच्च शिक्षा निदेशक ने अनुदानित महाविद्यालय के शिक्षकों से अपील है कि वह किसी भी संगठन के भ्रामक दुष्प्रचार में न आए और कोई भी ऐसा आचरण न करें, जो व्यापक छात्र हित और शिक्षा व्यवस्था को बनाए रखने के प्रतिकूल हो।